Where the mind is without fear
and the head is held high;
- Rabindranath Tagore
Original Bengali version:
চিত্ত যেথা ভয়শূন্য উচ্চ যেথা শির,
জ্ঞান যেথা মুক্ত, যেথা গৃহের প্রাচীর
আপন প্রাংগণতলে দিবস-শর্বরী
বসুধারে রাখে নাই খণড ক্ষুদ্র করি,
যেথা বাক্য হৃদযের উতসমুখ হতে
উচ্ছসিয়যা উঠে, যেথা নির্বারিত স্রোতে,
দেশে দেশে দিশে দিশে কর্মধারা ধায়
অজস্র সহস্রবিধ চরিতার্থতায়,
যেথা তুচ্ছ আচারের মরু-বালু-রাশি
বিচারের স্রোতঃপথ ফেলে নাই গ্রাসি -
পৌরুষেরে করেনি শতধা, নিত্য যেথা
তুমি সর্ব কর্ম-চিংতা-আনংদের নেতা,
নিজ হস্তে নির্দয় আঘাত করি পিতঃ,
ভারতেরে সেই স্বর্গে করো জাগরিত ||
Devanaagari transliteration
चित्त जेथा भयशून्य ,उच्च जेथा शिर ,
ज्ञान जेथा मुक्त जेथा गृहेर प्राचीर
आपन प्रांगणतले दिवसशर्वरी
बसुधारे राखे नाइ खण्ड खण्ड क्षुद्रकरि,
जेथा वाकय हृदयेर उत् समुखहते
उच्छ्वसिया उठे , जेथा निर्वारित स्रोते
दशे देशे दिशे दिशे कर्मधारा धाय
अजस्र सहसबिध चरितार्थताय-
जेथा तुच्छ आचारेर मरुबालुराशि
बिचारेर स्रोतःपथे फेले नाइ ग्रासि,
पौरुषेरे करे नि शतधा-नित्य जेथा
तुमि सर्व कर्म चिन्ता आनंदेर नेता-
निज हस्ते निर्दय आधात करि पितः,
भारतेर सेइ स्वर्गे करो जागरित।
Hindi Translation - कवी शिवमंगल सिंह "सुमन" द्वारा
जहां चित्त भय से शून्य हो
जहां हम गर्व से माथा ऊंचा करके चल सकें
जहां ज्ञान मुक्त हो
जहां दिन रात विशाल वसुधा को खंडों में विभाजित कर
छोटे और छोटे आंगन न बनाए जाते हों
जहां हर वाक्य ह्रदय की गहराई से निकलता हो
जहां हर दिशा में कर्म के अजस्त्र नदी के स्रोत फूटते हों
और निरंतर अबाधित बहते हों
जहां विचारों की सरिता
तुच्छ आचारों की मरू भूमि में न खोती हो
जहां पुरूषार्थ सौ सौ टुकड़ों में बंटा हुआ न हो
जहां पर सभी कर्म, भावनाएं, आनंदानुभुतियाँ तुम्हारे अनुगत हों
हे पिता, अपने हाथों से निर्दयता पूर्ण प्रहार कर
उसी स्वातंत्र्य स्वर्ग में इस सोते हुए भारत को जगाओ
English Translation
Where the mind is without fear
and the head is held high;
Where knowledge is free;
Where the world has not been
broken up into fragments by the tireless efforts of men;
Where words come out from
the depth of truth;
Where the currents of tireless striving originate
and flow without hindrance all over;
Where the clear stream of reason and thoughts has not lost its way into the dreary
desert sand of lowly habits and deeds;
Where the valour is not divided in 100 different streams;
Where all the deeds, emotions are blissfully given by you
My father, strike the sleeping India without mercy,
so that she may awaken into such a heaven.
2 Comments
🌹🌷🌹🌷🌹
ReplyDeleteBahut mihnat ki hai aap ne, Naghmah e Tagore ko samjhaney ke liey.
ReplyDelete