ले उड़ा फिर कोई ख़याल हमें
साक़िया साक़िया संभाल हमें
रो रहे हैं के एक आदत है
वरना इतना नहीं मलाल हमें
हम यहाँ भी नहीं है ख़ुश लेकिन
अपनी महफ़िल से मत निकाल हमें
हम तेरे दोस्त हैं 'फ़राज़' मगर
अब न उलझनों में डाल हमें
-अहमद फ़राज़
इसी ग़ज़ल के कुछ और अश'आर:
ख़लवती हैं तेरे जमाल के हम
आईने की तरह संभाल हमें
(ख़लवती = एकान्त प्रिय), (जमाल = सौंदर्य, शोभा)
इख़्तिलाफ़-ए-जहाँ का रंज न था
दे गए मात हम-ख़याल हमें
(इख़्तिलाफ़-ए-जहाँ = दुनिया से मतभेद), (रंज = कष्ट, दुःख, आघात, पीड़ा), (हम-ख़याल = एक से विचार वाले)
क्या तवक़्क़ो करें ज़माने से
हो भी ग़र जुर्रत-ए-सवाल हमें
(तवक़्क़ो = आशा, उम्मीद), (जुर्रत-ए-सवाल = प्रश्न पूछने का साहस)
Le Uda Phir Koi Khayaal Hamain
Saaqiya Saaqiya Sambhaal Hamain
Ro Rahe Hain Ke Ek Aadat Hai
Warna Itna Nahin Malaal Hamain
Hum Yahaan Bhi Nahin Hain Khush Lekin
Apni Mehfil Se Matt Nikaal Hamain
Hum Tere Dost Hain ‘Faraz’ Magar
Ab Na Aur Uljhanon Mein Daal Hamain
-Ahmed Faraz
Some more couplets from this ghazal:
Khalwati Hain Tere Jamaal Ke Hum
Aaeene Ki Tarah Sambhaal Hamain
Ikhtalaaf-E-Jahaan Ka Ranj Na Tha
De Gayye Maat Hum-Khayal Hamain
Kya Tawaqqo Karen Zamaane Se
Ho Bhi Gar Jurrat-E-Sawaal Hamain
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