Uth Jaag Ghurarde Maar Nahi

Lyrics (Bulleh Shah): Uth Jaag Ghurarde Maar Nahi
Composition No. 20135
Randomly picked a musical loop. Randomly came the lyrics across in a book that was lying on my table. The loop reminded me of a Ghulam Ali composition of a punjabi folk. So the melodic inspiration is directly from there and is very similar to that. 

Central idea: Wake up, don't snore. Such sleep is not responsible.   

Starting with this. Different rhyme. 
तूं सुत्त्यां उमर वंजाई ए तूं चरखे तन्द ना पाई ए,
की करसें दाज त्यार नहीं, उट्ठ जाग घुराड़े मार नहीं ।
उट्ठ जाग घुराड़े मार नहीं ।


उट्ठ जाग घुराड़े मार नहीं ।
इह सौन तेरे दरकार नहीं ।


इक रोज़ जहानों जाना ए जा कबरे विच समाना ए,
तेरा गोशत कीड़िआं खाना ए कर चेता मरग विसार नहीं,
उट्ठ जाग घुराड़े मार नहीं ।


तेरा साहा नेड़े आया ए कुझ्झ चोली दाज रंगाइआ ए,
क्युं आपना आप वंजाइआ ए ऐ ग़ाफ़ल तैनूं सार नहीं,
उट्ठ जाग घुराड़े मार नहीं ।


तूं जिस दिन जोबन मत्ती सैं, तूं नाल सईआं दे रत्ती सैं,
हो गाफल गल्लीं वत्ती सैं, इह भोरा तैनूं सार नहीं,
उट्ठ जाग घुराड़े मार नहीं ।

तूं मुढ्ढों बहुत कुचज्जी सैं, निरलज्ज्यां दी निरलज्जी सैं,
तूं खा खा खाने रज्जी सैं, हुन ताईं तेरा बार नहीं,
उट्ठ जाग घुराड़े मार नहीं ।

अज्ज कल्ल्ह तेरा मुक्कलावा ए क्युं सुत्ती कर कर दाअवा ए ?
अनडिठ्यां नाल मिलावा ए इह भलके गरम बज़ार नहीं,
उट्ठ जाग घुराड़े मार नहीं ।

तूं एस जहानों जाएंगी, फिर कदम ना एथे पाएंगी,
इह जोबन रूप वंजाएंगी, तैं रहना विच संसार नहीं,
उट्ठ जाग घुराड़े मार नहीं ।

मंज़ल तेरी दूर दुराडी, तूं पौणां विच जंगल वादी,
औखा पहुंचन पैर प्यादी, दिसदी तूं असवार नहीं,
उट्ठ जाग घुराड़े मार नहीं ।

इक इकल्ली तनहा चलसें, जंगल बरबर्र दे विच रुलस
लै लै तोशा इथों घलसें, उथे लैन उधार नहीं ।
उट्ठ जाग घुराड़े मार नहीं ।

उह खाली ए सुंञ हवेली, तूं विच रहसें इक्क इकेली,
ओथे होसी होर ना बेली, साथ किसे दा बार नहीं,
उट्ठ जाग घुराड़े मार नहीं ।

जेहड़े सन देसां दे राजे, नाल जिन्हां दे वज्जदे वाजे,
गए रो रो बेतखते ताजे, कोई दुनियां दा इतबार नहीं,
उट्ठ जाग घुराड़े मार नहीं ।

कित्थे है सुलतान सिकन्दर, मौत ना छड्डे पीर पैगम्बर,
सभ्भे छड्ड गए अडम्बर, कोई एथे पायदार नहीं,
उट्ठ जाग घुराड़े मार नहीं ।

किथे यूसफ माह-कन्यानी, लई ज़ूलैखां फेर जवानी,
कीती मौत ने ओड़क फ़ानी, फेर उह हार शिंगार नहीं,
उट्ठ जाग घुराड़े मार नहीं ।

कित्थे तख़त सुलेमां वाला, विच हवा उड्डदा सी बाला,
उह भी कादर आप संभाला, कोई ज़िन्दगी दा इतबार नहीं,
उट्ठ जाग घुराड़े मार नहीं ।

कित्थे मीर मलक सुलतानां, सभ्भे छड्ड छड्ड गए टिकाणा,
कोई मार ना बैठे ठाणा, लशकर दा जिन्हां शुमार नहीं,
उट्ठ जाग घुराड़े मार नहीं ।

फुल्लां फुल्ल चम्बेली लाला, सोसन सिम्बल सरू निराला,
बादि-खिज़ां कीता बुर हाला, नरगस नित खुमार नहीं,
उट्ठ जाग घुराड़े मार नहीं ।

जो कुझ करसें, सो कुझ पासें, नहीं ते ओड़क पिछोतासें,
सुंञी कूंज वांङ कुरलासें, खंभां बाझ उडार नहीं ।
उट्ठ जाग घुराड़े मार नहीं ।

डेरा करसें उहनीं जाईं, जिथे सेर पलंग बलाई,
खाली रहसन महल सराईं, फिर तूं विरसेदार नहीं,
उट्ठ जाग घुराड़े मार नहीं ।

असीं आज़ज़ विच कोट इलम दे, ओसे आंदे विच कलम दे,
बिन कलमे दे नाहीं कंम दे, बाझों कलमे पार नहीं,
उट्ठ जाग घुराड़े मार नहीं ।

बुल्ल्हा शौह बिन कोई नाहीं, एथों ओथे दोहीं सराईं,
संभल संभल के कदम टिकाईं, फेर आवन दूजी वार नहीं,
उट्ठ जाग घुराड़े मार नहीं ।

0 Comments